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जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पिता का प्लेन हुआ था हाईजैक, जानें 40 साल पुराना किस्सा

साल 5 जुलाई 1984 को, इंडियन एयरलाइंस की एक फ्लाइट को पठानकोट से हाईजैक कर लिया गया। यह फ्लाइट दुबई की ओर जा रही थी और उसमें 68 यात्री और 6 चालक दल के सदस्य सवार थे। हाईजैकर्स खालिस्तान समर्थक थे, जिनकी मांगें राजनीतिक थीं। इस प्लेन हाईजैक की खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई, और इसी बीच जयशंकर को यह जानकारी मिली कि उनके पिता भी उसी विमान में सवार हैं।

14 Sep, 2024
( Updated: 14 Sep, 2024
05:28 PM )
जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर के पिता का प्लेन हुआ था हाईजैक, जानें 40 साल पुराना किस्सा
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में जिनेवा के दौरे के दौरान एक ऐसा खुलासा किया है, जिसने सभी को चौंका दिया। दरअसल भारतीय समुदाय से बातचीत करते हुए उन्होंने साल 1984 किस्सा सुनाया, जब एक प्लेन हाईजैक की घटना ने न केवल देश बल्कि एस. जयशंकर के परिवार को भी हिला कर रख दिया था। इस घटना में उनके पिता, के. सुब्रह्मण्यम, भी उस विमान में सवार थे। एस. जयशंकर ने इस किस्से को सुनाते हुए बताया कि कैसे उस समय उन्होंने हालात को डील किया और इस पूरे अनुभव ने उनके दृष्टिकोण को बदलकर रख दिया।
साल 5 जुलाई 1984 को, इंडियन एयरलाइंस की एक फ्लाइट को पठानकोट से हाईजैक कर लिया गया। यह फ्लाइट दुबई की ओर जा रही थी और उसमें 68 यात्री और 6 चालक दल के सदस्य सवार थे। हाईजैकर्स खालिस्तान समर्थक थे, जिनकी मांगें राजनीतिक थीं। इस प्लेन हाईजैक की खबर पूरे देश में आग की तरह फैल गई, और इसी बीच जयशंकर को यह जानकारी मिली कि उनके पिता भी उसी विमान में सवार हैं।
जयशंकर उस वक्त एक युवा अधिकारी थे, और उन्हें सरकार की उस टीम का हिस्सा बनाया गया था जो इस अपहरण के मामले से निपट रही थी। एस. जयशंकर के लिए यह घटना बहुत ही व्यक्तिगत थी, क्योंकि एक ओर वह सरकार की ओर से इस संकट को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे, तो दूसरी ओर उनका परिवार भी इस स्थिति से सीधे प्रभावित हो रहा था। इस घटना ने उन्हें एक अनोखा दृष्टिकोण दिया, क्योंकि वह एक ओर उन परिवारों का दर्द देख रहे थे, जिनके प्रियजन उस विमान में फंसे हुए थे, वहीं दूसरी ओर वह खुद उस टीम का हिस्सा थे, जो इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दे रही थी।
जयशंकर ने इस घटना के बारे में कहा, "मैं उस समय एक युवा अधिकारी था। मुझे याद है कि मैंने अपनी मां को फोन करके बताया कि मैं नहीं आ सकता, क्योंकि अपहरण हो गया है। उसी वक्त मुझे पता चला कि मेरे पिता भी उस विमान में सवार हैं। यह एक बहुत ही मुश्किल समय था, लेकिन सौभाग्य से किसी की जान नहीं गई।"
इस हाईजैक की घटना का अंत लगभग 36 घंटे बाद हुआ था, जब खालिस्तानी समर्थक अपहर्ताओं ने दुबई में आत्मसमर्पण कर दिया। इस घटना के दौरान किसी भी यात्री या चालक दल के सदस्य को नुकसान नहीं पहुंचा, और सभी सुरक्षित रूप से विमान से बाहर आ गए। यह भारतीय सरकार और सुरक्षाबलों की एक बड़ी जीत थी, क्योंकि इतनी जटिल स्थिति को बिना खून-खराबे के सुलझा लिया गया था।
जयशंकर ने यह भी बताया कि दुबई में अपहर्ताओं के आत्मसमर्पण के बाद, उनके पिता समेत सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। यह घटना उनकी ज़िंदगी का एक ऐसा अनुभव था, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय संकटों से निपटने की एक नई समझ दी। इस घटना ने एस. जयशंकर को केवल एक अधिकारी के रूप में ही नहीं, बल्कि एक बेटे के रूप में भी प्रभावित किया। वह जानते थे कि संकट से निपटना केवल सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि इसमें उन परिवारों की भावनाएं भी शामिल होती हैं, जिनके प्रियजन ऐसी स्थिति में फंसे होते हैं। उन्होंने इस घटना को याद करते हुए कहा, "यह अनुभव मेरे लिए एक सबक था कि किसी भी संकट के दौरान परिवार और सरकार दोनों की भावनाओं को समझना बेहद जरूरी होता है।"
जिनेवा में बातचीत के दौरान उनसे हाल हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ IC814 को लेकर भी सवाल पूछा गए, तो जयशंकर ने उस घटना को भी 1984 के हाईजैक से जोड़ते हुए अपने व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया। उन्होंने बताया कि साल 1999 में कंधार में हुए IC814 विमान अपहरण के दौरान भी वह एक महत्वपूर्ण भूमिका में थे। लेकिन 1984 की घटना ने उन्हें पहले से ही संकट से निपटने की एक अनूठी समझ दे दी थी।

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