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महाकुंभ में भगदड़ के बाद योगी से इस्तीफा मांगने वाले शंकराचार्य को संतों ने घेर लिया !

महाकुंभ में मची भगदड़ में 30 लोगों की मौत हो गई. इस घटना के बाद सियासत भी चरम पर है. सियासत के साथ साथ संतों की भी प्रतिक्रिया सामने आई. ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने तो CM योगी से इस्तीफा ही मांग लिया. जिसके बाद साधु संतों और अखाड़ों ने उन्हें घेर लिया.

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03 Feb 2025
( Updated: 05 Dec 2025
08:35 PM )
महाकुंभ में भगदड़ के बाद योगी से इस्तीफा मांगने वाले शंकराचार्य को संतों ने घेर लिया !
28-29 जनवरी की दरम्यानी रात महाकुंभ में मची भगदड़ के बाद इंतजामों पर सवाल उठ गए। शासन प्रशासन सवालों के घेरे में आ गए. इस भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं ने जान गवां दी। एक तरफ हादसे के बाद PM मोदी लगातार CM योगी से पल पल की अपडेट ले रहे थे।खुद CM योगी भी लगातार अधिकारियों के संपर्क में थे। लेकिन महाकुंभ की सफलता का श्रेय लिया तो अब घटना पर सरकार आलोचना भी स्वभाविक है. घटना पर सियासत भी खूब हुई विपक्ष के साथ साथ संतों ने भी सरकार की आलोचना की और इनमें सबसे आगे रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद। अविमुक्तेश्वरानंद ने तो CM योगी से इस्तीफा तक मांग लिया। लेकिन अब इन्ही अविमुक्तेश्वरानंद पर सवाल उठ गए। संतों ने उनके बयान की तो आलोचना की ही साथ ही उनके शंकराचार्य की पदवी पर भी सवाल उठा दिया। असल में अविमुक्तेश्वरानंद संत है भी या नहीं ? 


वे कहते हैं कि केदारनाथ मंदिर से सोना चोरी हो गया। वे कहते हैं कि गैंगस्टर अतीक अहमद गलत मारा गया। वे कहते हैं धर्म में राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होनी चाहिए।और राजनीति में धर्मगुरुओं को ज्ञान नहीं देना चाहिए। लेकिन वे खुद नेताओं के साथ धरने पर बैठ जाते हैं। खुद को शंकराचार्य कहने वाले अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अब कह दिया कि यूपी के CM योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री रहने का ही अधिकार नहीं। योगी को घेरने चले अविमुक्तेश्वरानंद के खिलाफ संत समाज खड़ा हो गया। अविमुक्तेश्वरानंद ऐसे घिर गए कि उनकी गद्दी पर बन आई।

संतों ने अविमुक्तेश्वरानंद से पूछ लिया कि योगी नहीं तो कौन ? क्या उनका समर्थन किया जाए। जिनके राज में संतों को मारा गया था। जिनके राज में संतों को सड़कों पर घसीटा गया था ? जिन्होंने राम भक्तों पर गोलियां चलवाई थीं। क्या उनका समर्थन किया जाना चाहिए ? संतों ने अविमुक्तेश्वरानंद की टिप्पणी को अराजक और राजनीति से इंस्पायर है।

वहीं, योगी आदित्यनाथ पर अविमुक्तेश्वरानंद की टिप्पणी पर योग गुरु बाबा रामदेव ने भी सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा योगी राज धर्म के साथ सनातन धर्म भी निभा रहे हैं और उन पर ही अभद्र टिप्पणी की जा रही है।

योगी आदित्यनाथ का हिंदुत्व प्रेम किसी से छिपा नहीं है एक बारको RSS VHP जैसे संगठन हिंदुत्व के स्टैंड से अलग बयान दे सकते हैं लेकिन योगी अपने स्टैंड पर तटस्थ रहे। कई मौकों पर ऐसा दिखा भी। राजनीति में धर्म का इस्तेमाल करने के आरोप भी लगे लेकिन योगी अपने हिंदुत्व के स्टैंड पर कायम रहे। हालांकि किसी भी बड़े प्रोग्राम में कोई अनहोनि हुई है तो सत्ता पक्ष की आलोचना होनी चाहिए। लेकिन उनकी मंशा पर सवाल उठाना संतों को रास नहीं आया।अविमुक्तेश्वरानंद की इस्तीफा मांगने वाली राजनीतिक टिप्पणी के खिलाफ अखाड़े विरोध में उतर आए और खुलकर योगी का समर्थन किया। CM योगी भी इस बात को बखूबी जानते हैं तभी वे भगदड़ के बाद महाकुंभ पहुंचे तो साधु संतों का आभार जताया।

वहीं, अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य होने पर भी संतों ने सवाल उठा दिए। पुरी के शंकाराचार्य निश्चलानंद ने तो ये तक कह दिया कि मैं उन्हें संत मानता ही नहीं। अविमुक्तेश्वरानंद ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का उत्तराधिकारी मानते हैं लेकिन स्वामी निश्चलानंद का दावा है कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कोई उत्तराधिकारी घोषित ही नहीं किया था। इस विवाद के बीच आपको बताते हैं कौन हैं अविमुक्तेश्वरानंद और क्या रहा उनका इतिहास ? 

कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ? 


यूपी के प्रतापगढ़ में जन्में उमाशंकर उपाध्याय। 
वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ाई की।
यहां उन्होंने शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ली।
पढ़ाई पूरी होने के बाद 2003 में उन्हें दंड संन्यास की दीक्षा मिली ।
यहीं से उन्हें मिला नया नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती।
पढ़ाई के साथ साथ छात्र राजनीति में भी रहे।
1994 में छात्रसंघ का चुनाव लड़ा और जीते। 
गुजरात में ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आए। 
2022 में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य बने अविमुक्तेश्वरानंद।

संत की उपाधि मिलने के बाद भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पर राजनीति का प्रभाव ऐसा रह गया कि उनकी टिप्पणियों में कई बार राजनीति की झलक दिख ही जाती है।जबकि खुद अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती राजनीति को धर्म से दूर रखने की हिदायत देते रहते हैं। ऐसे में आपका इन पर क्या कहना है और क्या एक शंकरायार्च को सरकार से इस्तीफा मांगना चाहिए ? 

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