वक्फ के मुद्दे पर मोदी का साथ देना नीतीश को पड़ रहा भारी, चुनाव में हो सकता है बैकफ़ायर !
नीतीश कुमार की पार्टी ने भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा में साथ दिया। इस अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या नीतीश कुमार का वक्फ संशोधन बिल पर भारतीय जनता पार्टी का खुलकर समर्थन करने का साइडइफेक्ट उनको अपनी पार्टी के भीतर उठाना पड़ सकता है
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वक्फ संशोधन विधेयक लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास हो गया है। इस बिल के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को एनडीए में शामिल घटक दल का पूर्ण समर्थन मिला। ऐसे में बात अगर चुनावी राज्य बिहार की करें तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा में साथ दिया। इस अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या नीतीश कुमार का वक्फ संशोधन बिल पर भारतीय जनता पार्टी का खुलकर समर्थन करने का साइडइफेक्ट उनको अपनी पार्टी के भीतर उठाना पड़ सकता है , क्या चुनावी राज्य बिहार में मुस्लिम वोट बैंक को लेकर सभी विपक्षी दल एक हो गए। वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार की पार्टी के समर्थन के बाद मुस्लिम नेताओं में नाराजगी की बात भी खुलकर सामने आने लगी है।
इस्तीफों का सिलसिला शुरू
दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दालों की सक्रियता इस समय बढ़ी हुई है। एनडीए नीतीश कुमार की अगुवाई में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है। वही दूसरी तरफ विपक्ष की इंडिया महागठबंधन भी तेजस्वी यादव की अगुवाई में सत्तारूढ़ गठबंधन को चुनौती देने की योजना बना रहा है। ऐसे में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की बात की जाए तो, इस पार्टी की पहचान कट्टर हिंदू वाली नहीं है बल्कि सेक्युलर राजनीतिक पार्टी के तौर पर पार्टी जानी जाती रही है। ऐसे में वक्फ बिल के मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन करके जेडीयू ने थोड़ी मुसीबत चुनाव के पहले मोल ली है। बिहार में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और जेडीयू नेता अफजल अब्बास का कहना है कि इस बिल को लेकर मुस्लिम समुदाय में गुस्सा है। नीतीश कुमार को इस बात को समझाना पड़ेगा। आपको बता दें कि यह सिर्फ एक सवाल नहीं बल्कि अब पार्टी के अंदर इस्तीफों का दौर भी शुरू हो चुका है। नीतीश कुमार के बिल का समर्थन करने के बाद जदयू अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश सचिव मोहम्मद नवाज मलिक ने पार्टी से अपना त्यागपत्र दे दिया है। इससे पहले जदयू के नेता कासिम अंसारी ने भी अपना इस्तीफा दिया था। इनके अलावा अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव मोहम्मद तबरेज सिद्दीकी ने भी अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजा। नीतीश कुमार की पार्टी से विधान परिषद के सदस्य गुलाम गौस ने पहले ही इसको लेकर सवाल उठाया था और अब जेडीयू महासचिव गिलास रसूल ने भी इसका विरोध किया है।
नीतीश ने नहीं किया अंदरूनी मंथन
केंद्र की मोदी सरकार ने वक्फ संशोधन और विधायक को लेकर पहले ही दावा किया था कि वह इस बिल को पास कर कर रहेंगे। ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा में एनडीए में शामिल घटक दलों में शामिल मुख्य रूप से जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने बीजेपी का समर्थन किया। वही इस कांग्रेस ने इसे धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध बताया। अब बड़ा सवाल यह उठता है कि बीजेपी का साथ देने से पहले क्या जेडीयू ने पार्टी के भीतर मंथन नहीं किया था क्योंकि बिहार में कुछ महीने बाद विधानसभा के चुनाव हैं और मुस्लिम वोट बैंक चुनाव के परिणाम में खासा प्रभाव डालता है। दरअसल, अब पार्टी के सिर्फ मुस्लिम नेता ही नहीं बल्कि बिहार में मुस्लिम धर्म गुरु भी जदयू को धोखेबाज कहकर विधानसभा चुनाव में सबक सिखाने की बात कह रहे हैं। क्योंकि यह वही नीतीश कुमार है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर धर्मनिरपेक्षता का आरोप लगाकर 2014 में मोदी के दिल्ली पहुंचने से पहले वह एनडीए गठबंधन से अलग हुए थे। नीतीश कुमार ने हिंदू राष्ट्र की बात पर भी संविधान की दलील कई बार दी है। अब वहीं नीतीश कुमार का जब खुलकर भाजपा को साथ मिला तो यह बिल बड़ी ही आसानी से सदन से पास हो गया।
चुनाव में पड़ सकता है प्रभाव
वक्फ बिल के समर्थन के बाद आप नीतीश कुमार को बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले दोहरी विरोध का सामना करना पड़ेगा। पार्टी के मुस्लिम नेता नाराजगी के बाद एक-एक कर साथ छोड़ने जा रहे हैं तो वहीं मुस्लिम संगठन के साथ-साथ विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर चुनाव में नीतीश कुमार पर हमलावर दिखाई दे सकता है।
ग़ौरतलब है कि वक्फ संशोधन विधेयक को अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार को लोकसभा में पेश किया। जिस पर सत्ता पक्ष बनाम विपक्ष के नेताओं के बीच हुई तीखी बहस के बाद देर रात लोकसभा से पारित हुआ। निचले सदन में इसके समर्थन में 288 जबकि विरोध में 232 वोट पड़े। वही इस विधेयक को राज्यसभा यानी ऊपरी सदन में गुरुवार को रखा गया। यहां पर भी विपक्षी दलों के सांसदों ने विरोध किया। 12 घंटे लंबी चर्चा के बाद देर रात क़रीब ढाई बजे यह बिल राज्यसभा से भी पास हो गया। ऊपरी सदन में इस बिल के समर्थन में 128 जबकि विरोध में 95 वोट पड़े। इस लिहाज से अब यह बिल संसद के दोनों सदनों से पूर्ण बहुमत से साथ पास हुआ है। अब यह बिल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाएगा।
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