अमेरिका और चीन भी न ढूंढ सके जो, वो भारत ने खोज निकाला, चंद्रयान-3 से चांद का चौंकाने वाला रहस्य आया सामने
भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित शिव शक्ति पॉइंट पर एक चौंकाने वाली खोज की है. इस खोज ने ना सिर्फ NASA, चीन और रूस जैसे देशों को पीछे छोड़ दिया है, बल्कि चांद की आंतरिक बनावट को लेकर वैज्ञानिक सोच को भी पूरी तरह बदल दिया है.
01 May 2025
(
Updated:
09 Dec 2025
09:37 PM
)
Follow Us:
भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने चांद की सतह पर ऐसी ऐतिहासिक खोज कर डाली है, जिसने पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय को चौंका दिया है. चंद्रयान-3 ने दक्षिणी ध्रुव पर स्थित 'शिव शक्ति पॉइंट' पर जो डेटा इकट्ठा किया है, वो अब तक अमेरिका, रूस और चीन जैसे दिग्गज देशों के अंतरिक्ष अभियानों की सीमाओं को चुनौती देता है. इस खोज के केंद्र में है सल्फर यानी गंधक, जो चंद्रमा की सतह के नीचे छिपे एक बेहद पुराने भूगर्भीय रहस्य की ओर इशारा करता है.
इससे पहले अमेरिका का अपोलो मिशन हो या चीन का चांग-ई प्रोग्राम, कोई भी मिशन चांद के उस हिस्से तक नहीं पहुंच सका था जहां भारत का चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक उतरा. और यही बात इस मिशन को ऐतिहासिक और असाधारण बनाती है.
चंद्रयान-3 कैसे पहुंचा वहां, जहां कोई नहीं गया?
23 अगस्त 2023 को जब भारत का विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरा, तब भारत पूरी दुनिया की नजरों में छा गया. यह चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र है, जो बेहद ठंडा और दुर्गम माना जाता है. यहां सूरज की किरणें बहुत कम पहुंचती हैं. लेकिन इसके बावजूद ISRO ने अपनी तकनीकी श्रेष्ठता के दम पर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर सुरक्षित उतारने में सफलता पाई.
प्रज्ञान रोवर में लगाए गए 'Alpha Particle X-ray Spectrometer' (APXS) ने जो सैंपल जुटाए, वे अब अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक बिरादरी में चर्चा का विषय बन चुके हैं. इस यंत्र ने चंद्रमा की मिट्टी में पोटैशियम और सोडियम की बेहद कम मात्रा तो पाई, लेकिन सल्फर की मौजूदगी आश्चर्यजनक रूप से ज्यादा पाई गई.
सल्फर की मौजूदगी, चांद का पुराना घाव?
प्रज्ञान रोवर की यह खोज चांद के भूगर्भीय इतिहास से जुड़े एक बड़े रहस्य की ओर इशारा करती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि करीब 4.3 अरब साल पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर एक विशाल उल्कापिंड गिरा था. इस टक्कर से चांद की ऊपरी सतह फट गई और उसकी आंतरिक परत, जिसे मैटल (Mantle) कहा जाता है, खुलकर सामने आ गई.
इसी दौरान चंद्रमा के अंदर छिपे कुछ विशेष तत्व जैसे सल्फर सतह पर आने लगे. आज अरबों साल बाद यही सल्फर चंद्रयान-3 को शिव शक्ति पॉइंट पर मिला है. यानी यह सिर्फ एक वैज्ञानिक खोज नहीं, बल्कि चांद की आत्मा में झांकने का पहला प्रयास है.
KREEP क्षेत्रों से अलग क्यों है चंद्रयान की खोज?
अब तक के सभी अंतरिक्ष मिशन चंद्रमा के उन हिस्सों में उतरे हैं, जिन्हें KREEP-Rich Region कहा जाता है. KREEP यानी Potassium (K), Rare Earth Elements (REE) और Phosphorus (P). लेकिन चंद्रयान-3 इन पारंपरिक इलाकों को छोड़कर एक बिल्कुल नई जगह पर उतरा. यह निर्णय इसरो की दूरदृष्टि और वैज्ञानिक जोखिम उठाने की क्षमता को दिखाता है. और इसका परिणाम भी असाधारण रहा. सल्फर की अत्यधिक मात्रा, वाष्पशील तत्वों की अनोखी बनावट, और रेडिएशन के असामान्य संकेत, ये सभी संकेत बताते हैं कि चांद की यह जगह अब तक की सबसे अनदेखी और अनजानी जगहों में से एक है.
क्या सल्फर बनेगा चांद पर बस्ती बसाने का आधार?
सल्फर सिर्फ एक रासायनिक तत्व नहीं है. यह एक ऐसा घटक है जिसका उपयोग औद्योगिक निर्माण में किया जाता है. अगर वैज्ञानिक भविष्य में चांद पर मानव बस्ती बसाने का सपना देखते हैं, तो सल्फर वहां कंक्रीट जैसे मजबूत पदार्थों को बनाने में मदद कर सकता है. साथ ही, इससे बिजली उत्पादन, बैटरियों और अन्य ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने की संभावना भी खुलती है. यानी यह खोज सिर्फ भू-रसायन या खगोलविज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवता के अगले कदम की नींव भी रख सकती है.
चंद्रयान-3 मिशन सिर्फ एक अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं था, यह भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं का परिचायक है. बेहद सीमित बजट और संसाधनों के बावजूद, ISRO ने जो सफलता हासिल की है, वह कई विकसित देशों के लिए प्रेरणा बन गई है. NASA तक ने इस खोज को लेकर भारत की तारीफ की है. चंद्रयान-3 मिशन के पीछे काम कर रहे वैज्ञानिकों की टीम ने साबित कर दिया है कि वैज्ञानिक सोच, सही रणनीति और आत्मविश्वास से क्या कुछ हासिल किया जा सकता है.
जैसे ही यह खोज सार्वजनिक हुई, दुनिया भर के खगोलविद और अंतरिक्ष संस्थाएं इसकी चर्चा करने लगीं. NASA, ESA और JAXA जैसी संस्थाओं ने इस खोज को ऐतिहासिक और दिशा-निर्धारक बताया. भारतीय वैज्ञानिकों को अब अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल्स में बुलाया जा रहा है. दुनिया को अब भारत से और भी बड़ी खोजों की उम्मीद है.
शिव शक्ति पॉइंट पर मिली सल्फर की मौजूदगी सिर्फ एक वैज्ञानिक डेटा नहीं, बल्कि एक संकेत है कि भारत अब चंद्रमा पर बस्तियों के सपने देखने की तैयारी कर चुका है. और शायद वह दिन दूर नहीं जब ‘चांदनी रात’ में झांकते हुए हम कह पाएंगे "वहां भारत भी है."
टिप्पणियाँ 0
कृपया Google से लॉग इन करें टिप्पणी पोस्ट करने के लिए
Google से लॉग इन करें