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'75 की उम्र होने पर दूसरे को मौका देना चाहिए...', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कही ये बात, किसे दिया संदेश

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कार्यक्रम में कहा कि 75 वर्ष पार करने पर व्यक्ति को जिम्मेदारियां युवाओं को सौंप देनी चाहिए, और इस संदर्भ में उन्होंने वरिष्ठ प्रचारक मोरोपंत पिंगले का उदाहरण दिया. बयान के बाद अटकलें तेज हैं कि यह टिप्पणी इस वर्ष 75 के होने जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर संकेत करती है, हालांकि संघ या सरकार ने कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी.

11 Jul, 2025
( Updated: 01 Dec, 2025
07:29 PM )
'75 की उम्र होने पर दूसरे को मौका देना चाहिए...', RSS प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों कही ये बात, किसे दिया संदेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान ऐसी बात कही, जो केवल संगठन की कार्यप्रणाली ही नहीं बल्कि जीवन के मूल्य भी उजागर करती है. उन्होंने कहा कि जब कोई 75 वर्ष की उम्र पार कर लेता है, तो उसे जिम्मेदारियों से धीरे-धीरे पीछे हट जाना चाहिए और नए लोगों को अवसर देना चाहिए. इस वक्तव्य का संदर्भ सिर्फ संगठनात्मक बदलावों से नहीं है, बल्कि यह भारतीय सोच और संस्कृति में बुज़ुर्गों की भूमिका को लेकर भी एक गहरा संदेश है. इस मौके पर भागवत ने संघ के विचारक मोरोपंत पिंगले को याद किया, जो संघ के सबसे सशक्त और मौन कार्यकर्ताओं में गिने जाते हैं. 

दरअसल, मोहन भागवत की इस बात के कई मायने निकाले जा रहे हैं क्योंकि इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने जीवन के 75 वर्ष पूरे कर लेंगे. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या यह टिप्पणी संकेतात्मक थी. हालांकि संघ और सरकार दोनों ने इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन इसे लेकर अटकलें लगातार लगाई जा रही हैं.

संघ की बैठक में मोरोपंत पिंगले को किया गया था सम्मानित
मोहन भागवत ने बताया कि संघ की एक बैठक में जब मोरोपंत पिंगले 75 वर्ष के हुए, तो उन्हें विशेष रूप से शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया था. उस सम्मान के जवाब में मोरोपंत ने कहा था कि वे इस उम्र की गंभीरता को भली-भांति समझते हैं. यह केवल एक वाक्य नहीं था, बल्कि एक विचार था जो जीवन भर की निस्वार्थ सेवा के बाद आत्मबोध से उत्पन्न हुआ था. भागवत ने इस अनुभव को साझा करते हुए स्पष्ट किया कि यह संघ में स्थापित एक परंपरा बन चुकी है, जहां व्यक्ति समय आने पर खुद पीछे हट जाता है ताकि संगठन में नई ऊर्जा और नेतृत्व को जगह मिल सके.

पूर्ण निस्वार्थता की प्रतिमूर्ति थे मोरोपंत पिंगले
नागपुर में हुए एक पुस्तक विमोचन समारोह में मोहन भागवत ने मोरोपंत पिंगले को "पूर्ण निस्वार्थता की प्रतिमूर्ति" बताया. यह कार्यक्रम ‘मोरोपंत पिंगले: द आर्किटेक्ट ऑफ हिंदू रिसर्जेंस’ पुस्तक के विमोचन के लिए आयोजित किया गया था. उन्होंने कहा कि पिंगले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने राष्ट्र निर्माण को सर्वोपरि मानते हुए अपना पूरा जीवन उसी के लिए समर्पित कर दिया. वे प्रचार से दूर रहकर भी एक ऐसा काम कर गए, जिसकी गूंज आज भी संगठन के हर कार्यकर्ता के मन में है.

हर विचारधारा से संवाद करने की क्षमता
भागवत ने अपने भाषण में यह भी बताने की कोशिश किया कि मोरोपंत में विभिन्न विचारधाराओं वाले लोगों से जुड़ने की असाधारण क्षमता थी. वे वैचारिक मतभेदों को टकराव की जगह संवाद में बदल देते थे. यही कारण था कि उनकी सोच और दृष्टिकोण ने न केवल संघ के अंदर बल्कि समाज के अन्य हिस्सों में भी प्रभाव डाला. मोहन भागवत ने उनकी दूरदर्शिता और जटिल विचारों को सरल शब्दों में समझाने की क्षमता की भी सराहना की. यह गुण आज के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा है, जो अक्सर विचारधाराओं के नाम पर संवाद से कट जाते हैं. अपने वक्तव्य में मोहन भागवत ने एक ऐतिहासिक संदर्भ का भी उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद जब देश की राजनीति में परिवर्तन की संभावनाएं दिखाई देने लगी थीं, तब मोरोपंत पिंगले ने विपक्षी दलों की एकता को लेकर एक भविष्यवाणी की थी. उन्होंने कहा था कि यदि सभी विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो वे लगभग 276 सीटें जीत सकते हैं. आश्चर्यजनक रूप से, नतीजों में विपक्ष को ठीक उतनी ही सीटें मिलीं. यह भविष्यवाणी न केवल उनकी राजनीतिक समझ को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि वे राष्ट्र की दशा-दिशा को कितनी बारीकी से समझते थे.

मौजूदा हालात को लेकर यह संदेश क्यों महत्वपूर्ण है?
बताते चलें  कि  आज जब सत्ता, पद और पहचान को पकड़कर रखने की होड़ बढ़ती जा रही है, तब मोहन भागवत की यह सीख और मोरोपंत पिंगले का उदाहरण समाज को एक नई दिशा देने वाला है. 75 की उम्र केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि अनुभव और विराम का वह पड़ाव है जहां से व्यक्ति को समाज और संस्थान को संबल देना चाहिए, न कि स्वयं को केंद्र में बनाए रखने की जिद करनी चाहिए. संघ की यह परंपरा भारतीय मूल्यों के अनुरूप है, जहां बुजुर्ग मार्गदर्शक बनते हैं और युवाओं को जिम्मेदारी सौंपते हैं.

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