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महाकुंभ पधारे पीएम मोदी से क्या चाहते हैं पुरी पीठ शंकराचार्य ?

अब जब आस्था की डुबकी लगाने जैसे ही पीएम मोदी महाकुंभ पधारे, शंकराचार्य ने उन्हें किस बात का खुला चैलेंज दे दिया ? …. हिंदू राष्ट्र की भविष्यवाणी करने वाले निश्चलानंद सरस्वती महाराज आख़िर देश के प्रधानमंत्री से चाहते क्या हैं ? …. किन चीजों को लेकर पीएम मोदी से शंकराचार्य की नाराज़गी बनी हुई है ? ….. हर सवाल का जवाब ढूँढेंगे, धर्म ज्ञान की इस ख़ास रिपोर्ट में

महाकुंभ पधारे पीएम मोदी से क्या चाहते हैं पुरी पीठ शंकराचार्य ?
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के शंकराचार्य पुरी पीठ के निश्चलानंद सरस्वती महाराज, दोनों के बीच की ट्यूनिंग को समझ पाना थोड़ा मुश्किल है।ऐसा इसलिए क्योंकि पीएम मोदी को घेरने का शंकराचार्य एक भी मौक़ा छोड़ता नहीं और पीएम मोदी उनसे आशीर्वाद लेने का एक भी मौक़ा चूकते नहीं है।गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी कई दफ़ा शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज की चौखट पर जाकर नतमस्तक हुए।उनके समक्ष कम से कम भूल करने का आशीर्वाद माँगा है। हालाँकि तमाम आलोचना के बावजूद भी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने ये माना है कि पीएम मोदी ने सनातन का ध्वज वाहक बनकर देश की प्रगति में ऐतिहासिक कार्य किये हैं।और अब जब आस्था की डुबकी लगाने जैसे ही पीएम मोदी महाकुंभ पधारे, शंकराचार्य ने उन्हें किस बात का खुला चैलेंज दे दिया ? हिंदू राष्ट्र की भविष्यवाणी करने वाले निश्चलानंद सरस्वती महाराज आख़िर देश के प्रधानमंत्री से चाहते क्या हैं ? हर सवाल का जवाब ढूँढेंगे।


5 फ़रवरी का दिन जब राजधानी दिल्ली में वोट डाले गए, तब देश के कर्मशील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी संगम नगरी प्रयागराज में दिखाई दिये। तन पर भगवा ओढ़े।गले में रुद्राक्ष धारण किये और ज़ुबान पर मंत्रोच्चार । अपने इसी सनातनी अंदाज में महाकुंभ में पीएम मोदी ने आस्था की डुबकी लगाई। स्नान के बाद सूर्ज्ञ को अर्ध्य दिया। आचमन कर माँ गंगा को नमस्कार किया।इन सबके बीच शंकराचार्य के शिवर से एक ऐसी माँग उठी, जिसके बाद से राजनीतिक गलियारे में हलचल हो गई।या फिर यूँ कहें कि पीएम मोदी के महाकुंभ में आते ही, शंकराचार्य ने उन्हें खुला चैलेंज दे दिया। लेकिन चैलेंज किस चीज को लेकर, ये जानने के लिए बने रहिये धर्म ज्ञान के साथ।

पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज, संत समाज से आने वाली एक ऐसी पूजनीय शख़्सियत है, जिनका नाम इस समाज में बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। और आज इन्हीं के सानिध्य में सनातन की प्रचार प्रचार चहुं दिशाओं में हो रहा है।अबकी बार यूँ तो स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कई विषयों पर अपनी राय रखी, लेकिन जैसे ही बात देश के मठ-मंदिरों पर आई, तो उन्होंने इसको लेकर सरकार को चैलेंज दे दिये।दरअसल हिंदू राष्ट्र की पैरवी करते हुए शंकराचार्य ने ये कहा कि गुलाम नबी आजाद भी स्वीकार कर चुके हैं कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे।हमारा दू राष्ट्र का लक्ष्य है सुरक्षित, स्वस्थ, सुसंस्कृत, शिक्षित, सेवापरायण समाज की स्थापना है। साथ में दूसरे लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए हिंदु‌ओं के अस्तित्व व आदर्श की रक्षा करना है। हालाँकि शंकराचार्य ने सनातन बोर्ड के आईडिया को नकारा..क्योंकि वो ये मानते हैं कि अगर शंकराचार्य अपना काम करने लगें तो दूसरे बोर्ड की क्या जरूरत है? यह तो सिर्फ और सिर्फ नाम कमाने की बात है।फिर जैसे ही उनसे मठ-मंदिर को लेकर सवाल पूछा गया, तब शंकराचार्य ने ये कहा कि "अगर शासन तंत्र खुद को सेक्युलर कहता है तो उसे धार्मिक, आध्यात्मिक क्षेत्र में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है।पर्व का निर्धारण पंचांग के आधार पर होता है।सरकार का काम उसकी व्यवस्था करना है "

शंकराचार्य के इस बयान को सरकार पर कटाक्ष माना जा रहा है।इसे हर कोई सरकार के लिए चुनौती मान रहा है। क्योंकि सच तो यही है कि मस्जिद और चर्च को छोड़कर देशभर के मठ-मंदिर अभी तक सरकार के कंट्रोल में है।अगर पीएम मोदी अपने इसी कार्यकाल में मठ-मंदिरों को सरकारी कंट्रोल से बाहर कर देती है, तो ये अपने आप में एक ऐतिहासिक फ़ैसला होगा। हालाँकि इन्हीं मठ मंदिरों से सरकार का करोड़ों का रेवन्यू जेनेरेट होता है।मोदी 3.0 को अगर हिंदुत्ववादी सरकार के खाँचे में फ़िट किया जाए, तो सनातनियों के हित में पीएम मोदी के लिए अभी सबसे ज़्यादा ज़रूर क्या है ? 

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