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सूर्यास्त के बाद नहीं लगाना चाहिए सिंदूर? जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य, क्या होता है नुकसान?

भारतीय संस्कृति में सिंदूर को सुहागन महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार माना जाता है। यह न केवल पति के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि इसे धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी विशेष स्थान दिया गया है। लेकिन आपने अक्सर सुना होगा कि दादी-नानी सूर्यास्त के बाद सिंदूर लगाने से मना करती हैं। आखिर इसके पीछे क्या कारण है? क्या यह महज एक परंपरा है, या इसके पीछे कोई गहरा रहस्य छिपा है?

सूर्यास्त के बाद नहीं लगाना चाहिए सिंदूर? जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य, क्या होता है नुकसान?
भारतीय परंपराओं और रीति-रिवाजों में सोलह श्रृंगार का खास महत्व है, और इनमें सिंदूर को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। विवाहित महिलाओं की मांग में सजा सिंदूर केवल एक श्रृंगार नहीं है, बल्कि यह उनके वैवाहिक जीवन, प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में सिंदूर लगाने से जुड़े कई नियम और परंपराएं बताई गई हैं। इनमें से एक है कि सूर्यास्त के बाद सिंदूर नहीं लगाना चाहिए। लेकिन ऐसा क्यों कहा गया है? क्या इसके पीछे केवल धार्मिक मान्यताएं हैं, या इसका वैज्ञानिक आधार भी है? आइए, इस रोचक विषय को विस्तार से समझते हैं।

हिंदू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित सोलह श्रृंगार में इसे सर्वोपरि स्थान दिया गया है। सिंदूर का उपयोग विवाहित महिलाओं की मांग में किया जाता है, जो उनके पति के दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना का प्रतीक है। मान्यता है कि सिंदूर लगाने से महिलाओं को ऊर्जा मिलती है और यह उन्हें सकारात्मकता से भर देता है।

सिंदूर में मुख्य रूप से पारा (Mercury) होता है, जो मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है और तनाव को कम करता है। धार्मिक दृष्टि से, इसे शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक भी माना गया है। शिव ऊर्जा के स्रोत हैं, जबकि शक्ति इस ऊर्जा को नियंत्रित करती हैं। इस तरह, सिंदूर का इस्तेमाल महिलाओं की मानसिक और शारीरिक शक्ति को संतुलित करता है।
सूर्यास्त के बाद सिंदूर लगाने की मनाही क्यों?
शास्त्रों के अनुसार, सिंदूर लगाने का समय सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही है। सूर्य को हिंदू धर्म में ऊर्जा, सकारात्मकता और जीवन के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। सूर्यास्त के बाद सूर्य की ऊर्जा का प्रभाव कम हो जाता है और चंद्रमा का समय शुरू हो जाता है। चंद्रमा, जो रात्रि का स्वामी है, स्त्रीत्व और शीतलता का प्रतीक है। ऐसे में कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद का समय तमोगुणी प्रवृत्तियों का होता है। इस समय नकारात्मक ऊर्जाओं का प्रभाव बढ़ जाता है, और ऐसे समय में सिंदूर लगाने से यह शुभ फल नहीं देता। सिंदूर का प्रभाव तभी सकारात्मक होता है, जब इसे दिन की ऊर्जा के साथ जोड़ा जाए। सूर्यास्त के बाद इसे लगाने से शुभता में कमी आ सकती है और नकारात्मक शक्तियां प्रभाव डाल सकती हैं।

यह भी माना जाता है कि सूर्यास्त के बाद महिलाएं घर के बाहर कम जाती थीं, और ऐसे में सिंदूर लगाने का कोई खास प्रयोजन नहीं रहता था। दूसरी ओर, रात्रि का समय धार्मिक अनुष्ठानों या तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी माना गया है, इसलिए सिंदूर जैसे पवित्र प्रतीक को इस समय इस्तेमाल करने से बचने की परंपरा बनी।
वैज्ञानिक कारण
सिंदूर में पारा जैसे तत्व पाए जाते हैं, जो दिन के समय शरीर के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। पारा मस्तिष्क को ठंडक देता है और तनाव को कम करता है, लेकिन रात्रि के समय इसे लगाने से इसका प्रभाव उल्टा हो सकता है। रात में पारा के प्रभाव से मन अशांत हो सकता है और यह स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है। यही कारण है कि रात के समय सिंदूर लगाने से बचने की सलाह दी जाती है।

हालांकि आज समय के साथ परंपराएं बदल रही हैं और उनकी व्याख्या भी आधुनिक दृष्टिकोण से की जा रही है। आज के समय में महिलाएं अपनी इच्छानुसार श्रृंगार करती हैं, लेकिन अगर वे इन बातों को थोड़ा ध्यान से समझें, तो यह उनके जीवन को और भी सकारात्मक बना सकता है।

सूर्यास्त के बाद सिंदूर न लगाने की परंपरा केवल धार्मिक आस्थाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और ज्योतिषीय कारण भी हैं। यह हमें सिखाता है कि हमारे पूर्वजों की परंपराओं में केवल आस्था ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी शामिल है। इ यह परंपरा हमें अपनी संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं से जोड़ती है, साथ ही हमारे जीवन को बेहतर और संतुलित बनाने का मार्ग दिखाती है। सिंदूर का महत्व समझते हुए इसे सही समय और तरीके से अपनाना ही इसका सही सम्मान है।

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