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Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से क्यों दिया जाता है चंद्रमा को अर्घ्य, जानें आध्यात्मिक कनेक्शन

Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है। यह करवा, जो जीवन का प्रतीक माना जाता है, मिट्टी से बने होने के कारण पृथ्वी से जुड़े रिश्तों और स्त्री के मातृत्व का प्रतीक है। चंद्रमा को अर्घ्य देने की यह परंपरा पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की समृद्धि के लिए की जाती है।

20 Oct, 2024
( Updated: 21 Oct, 2024
08:55 AM )
Karwa Chauth 2024: करवा चौथ पर मिट्टी के करवे से  क्यों दिया जाता है चंद्रमा को अर्घ्य,  जानें आध्यात्मिक कनेक्शन
Karwa Chauth 2024: करवा चौथ के व्रत में मिट्टी के करवे का विशेष महत्व है। करवा चौथ एक प्राचीन हिंदू परंपरा है, जहां सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए निर्जल व्रत रखती हैं। मिट्टी का करवा, जो एक छोटे पात्र के रूप में होता है, इस व्रत का मुख्य प्रतीक है और इसे चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए उपयोग किया जाता है। इस करवे से चंद्रमा को जल अर्पित किया जाता है, जो सौभाग्य, समृद्धि और परिवार के कल्याण का प्रतीक माना जाता है।
मिट्टी के करवे का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
मिट्टी से बने करवे का प्रयोग करवा चौथ के व्रत में सदियों से किया जाता रहा है। इसका उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जिसमें करवा (मिट्टी का पात्र) को धैर्य, पवित्रता और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक माना जाता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी को शुद्ध और पवित्र माना जाता है, क्योंकि इससे उत्पत्ति और अंत दोनों जुड़े हुए हैं। करवा, जो कि मिट्टी का बना होता है, जीवन के इस चक्र को दर्शाता है।

चंद्रमा को अर्घ्य देने का महत्व

चंद्रमा को अर्घ्य देने का धार्मिक महत्व काफी गहरा है। चंद्रमा को शीतलता, मन की शांति और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। करवा चौथ के व्रत में जब महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, तो वे इस विश्वास के साथ जल अर्पित करती हैं कि उनके पति की आयु लंबी हो और उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहे। चंद्रमा को मिट्टी के करवे से अर्घ्य देने की परंपरा यह भी दर्शाती है कि प्राचीन समय में लोग प्रकृति के साथ कितने जुड़े हुए थे।

करवा से जुड़ी कथा

करवा चौथ की कथा के अनुसार, करवा नामक एक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से युद्ध किया था। करवा की दृढ़ता और पतिव्रता धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति को जीवनदान दिया। इसी श्रद्धा के प्रतीक स्वरूप मिट्टी के करवे का उपयोग व्रत में किया जाता है, जो अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक है।

वर्तमान में करवा चौथ और मिट्टी का करवा

आधुनिक युग में, जहां चीजें बदल रही हैं, फिर भी करवा चौथ की इस प्राचीन परंपरा में मिट्टी के करवे का स्थान बरकरार है। कई जगहों पर धातु या प्लास्टिक के करवे का इस्तेमाल होने लगा है, लेकिन मिट्टी का करवा न सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल भी है। इसीलिए करवा चौथ के दिन मिट्टी के करवे का उपयोग करना एक सुंदर परंपरा को जीवित रखने का तरीका है।

करवा चौथ में मिट्टी के करवे का धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व है। यह केवल एक प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति, विश्वास और श्रद्धा से जुड़ा एक गहरा संबंध है। मिट्टी का करवा भारतीय संस्कृति की धरोहर का हिस्सा है, जो हमें प्रकृति और अपने रिश्तों की गहराई का महत्व समझाता है। करवा चौथ के व्रत में मिट्टी के करवे का उपयोग हमारी प्राचीन मान्यताओं और परंपराओं को संरक्षित करने का एक माध्यम है, जिसे हमें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना चाहिए।

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