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महाभारत काल से जुड़ा कनक दुर्गा मंदिर, जहां अर्जुन ने भगवान शिव से पाया था पशुपति अस्त्र!

भारत में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जो अपनी मान्यताओं और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं. इन्हीं में से एक मंदिर आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित कनक दुर्गा मंदिर है. यह मंदिर अपनी खूबसूरत वास्तुकला और पौराणिक कथाओं के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि अर्जुन ने यहां भगवान शिव और माता दुर्गा की कठोर तपस्या की थी. प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाशुपतास्त्र दिया. लेकिन साथ में एक चेतावनी भी दी थी. पूरी खबर पढ़िए…

29 Oct, 2025
( Updated: 29 Oct, 2025
09:43 AM )
महाभारत काल से जुड़ा कनक दुर्गा मंदिर, जहां अर्जुन ने भगवान शिव से पाया था पशुपति अस्त्र!

दक्षिण भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक कला और पुरातात्विक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है. यहां कई चमत्कारिक मंदिर हैं. इन्हीं में से एक आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित कनक दुर्गा मंदिर है, जो अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है. मंदिर का इतिहास महाभारत और महिषासुर से जुड़ा हुआ माना जाता है. दूर-दूर से श्रद्धालु मां दुर्गा के शक्ति स्वरूप के दर्शन करने यहां आते हैं.

आखिर किसने की थी इस मंदिर की स्थापना?

लोक मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना खुद हुई थी.  इसे स्वयंप्रभु मंदिर के रूप में जाना जाता है. मंदिर से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि महिषासुर का वध करने के बाद आदिशक्ति ने इंद्रकीलाद्रि पर्वत को अपना निवास स्थान चुना. वहां ऋषि के आग्रह पर उन्होंने स्थायी रूप से विराजमान होने का निर्णय लिया. बाद में भक्तों ने उनकी पूजा-अर्चना के लिए मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर परिसर में भगवान शिव और कार्तिकेय के मंदिर भी हैं, जिनका विस्तार बाद में काकतीय और विजयनगर शासकों द्वारा किया गया.

भगवान शिव की होती है विशेष पूजा

मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा बिल्वपत्र से करने पर भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. बिल्वपत्र चढ़ाने की परंपरा के कारण भगवान शिव को यहां मल्लिकार्जुन स्वामी के नाम से पूजा जाता है.

क्या मंदिर का इतिहास जुड़ा महाभारत काल से?

मंदिर के इतिहास को महाभारत काल से जोड़ा जाता है. लोक कथाओं में वर्णित है कि अर्जुन ने इंद्रकील पर्वत पर भगवान शिव की कठिन तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें पशुपति अस्त्र प्राप्त हुआ. हालांकि महाभारत में यह घटना हिमालय क्षेत्र के इंद्रकील पर्वत से जुड़ी बताई गई है, लेकिन स्थानीय परंपरा इसे विजयवाड़ा के इंद्रकीलाद्रि से जोड़ती है. पशुपतास्त्र का प्रयोग अर्जुन ने किसी पर नहीं किया, क्योंकि भगवान शिव ने चेतावनी दी थी कि मनुष्य पर इसका उपयोग करने से पृथ्वी का विनाश हो सकता है.

अपनी अद्भुत प्रतिमा के लिए जाना जाता है ये दिव्य मंदिर

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यह मंदिर शक्ति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि मां कनक दुर्गा भगवान शिव के बाईं ओर विराजमान हैं जो दक्षिण भारतीय मंदिर परंपरा में शक्ति के दक्षिण पक्ष को दर्शाता है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए लोग विशेष रूप से यहां पूजा करते हैं. कहा जाता है कि मां कनक स्वयं भक्तों को शत्रुओं से मुक्ति और विजय प्रदान करती हैं. नवरात्रि के दौरान मंदिर में विशेष अनुष्ठान होते हैं, जिसमें कृष्णा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर से मां की प्रतिमा को नाव में विराजमान कर नौकाविहार कराया जाता है.

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