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बाबा बैद्यनाथ एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां शिव और शक्ति दोनों करते हैं वास

बाबा बैद्यनाथ धाम, झारखंड के देवघर में स्थित एक पवित्र ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जिसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इसे "कामनालिंग" कहा जाता है क्योंकि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस धाम की विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव और माता सती दोनों का वास माना जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें चतुष्प्रहर पूजा, मोर मुकुट अर्पण और पंचशूल स्थापना प्रमुख हैं।

बाबा बैद्यनाथ एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग जहां शिव और शक्ति दोनों करते हैं वास
झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम, जिसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक प्रमुख स्थान प्राप्त है। देवघर एक ऐसा पावन स्थल है जो शिवभक्तों की आस्था का केंद्र है। बाबा भोलेनाथ की महिमा का बखान न जाने कितनी शास्त्रों और लोकगीतों में किया गया है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस धाम में अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों बाबा बैद्यनाथ को कामनालिंग कहा जाता है? और क्यों इसे शिव-शक्ति का मिलन स्थल माना जाता है?  

बाबा बैद्यनाथ एक जागृत ज्योतिर्लिंग

बाबा बैद्यनाथ धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह एक जागृत ज्योतिर्लिंग है, जिसका उल्लेख द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में मिलता है "पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसंतं गिरिजासमेतम्। सुरासुराराधितपादपद्यं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि।।"  यहां भगवान शिव और माता सती दोनों का वास है। मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को खंडित किया था, तब उनका हृदय इसी स्थान पर गिरा था, इसलिए इसे हृदयपीठ भी कहा जाता है। यह स्थान न केवल शिव की शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह भक्तों की हर इच्छा को पूर्ण करने वाला भी माना जाता है।  
महाशिवरात्रि पर देवघर की भव्यता
महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर देवघर का नजारा देखने लायक होता है। पूरे शहर को सजाया जाता है, शिव बारात निकाली जाती है, जिसमें हर आयु वर्ग के लोग सम्मिलित होते हैं। बच्चे, बूढ़े, युवा और महिलाएं इस भव्य आयोजन का हिस्सा बनते हैं। यहां की सबसे प्रमुख परंपरा चतुष्प्रहर पूजा है, जो शिवरात्रि की रात को चार प्रहर में पूरी की जाती है। मंदिर के प्रधान पुजारी प्रभाकर शांडिल्य बताते हैं, "बाबा बैद्यनाथ के गर्भगृह में पंचशूल स्थित है। यह पंचशूल शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है। दो शूल शक्ति के आधार को दर्शाते हैं, जबकि त्रिशूल भगवान शिव का प्रतीक है। इसीलिए इसे आत्मालिंग और कामनालिंग कहा जाता है।"  
ऐसा कहा जाता है कि बाबा बैद्यनाथ हमेशा ध्यानस्थ रहते हैं, लेकिन माता सती सदैव जागृत रहती हैं। जब कोई भक्त यहां आकर बाबा से प्रार्थना करता है, तो माता सती स्वयं उस प्रार्थना को सुनती हैं और जब बाबा ध्यान से लौटते हैं, तब माता उनसे भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने का आग्रह करती हैं। यही कारण है कि इसे कामनालिंग कहा जाता है  जहां हर मनोकामना पूर्ण होती है।  
देवघर में महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक दिव्य आयोजन है। यहां कुछ विशेष धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जो इसे अन्य ज्योतिर्लिंगों से अलग बनाते हैं।
1. चतुष्प्रहर पूजा: इस दिन चार बार विशेष पूजन किया जाता है। हर प्रहर में अलग-अलग विधि से शिवलिंग का अभिषेक होता है।  
2. मोर मुकुट अर्पण: जो लोग विवाह की समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, वे इस दिन बाबा को मोर मुकुट अर्पित करते हैं, जिससे विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।  
3. पंचशूल स्थापना: महाशिवरात्रि से पहले पंचशूल निकाला जाता है और फिर इस पर्व पर मंदिर के शिखर पर दोबारा स्थापित किया जाता है।  
4. बाबा बैद्यनाथ का विवाह: इस दिन विशेष रीति-रिवाजों से भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न कराया जाता है। इस अवसर पर मंदिर में सिंदूर अर्पित किया जाता है, जिससे यह परंपरा पूर्ण होती है।  

शिव-शक्ति का यह मिलन स्थल क्यों है अद्वितीय?

भारत में कई ज्योतिर्लिंग हैं, लेकिन बाबा बैद्यनाथ धाम का स्थान विशेष इसलिए है, क्योंकि यह एकमात्र ऐसा स्थल है जहां शिव और शक्ति दोनों का वास है। यहां भगवान भोलेनाथ केवल एक पुरुष नहीं, बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं और माता सती के साथ मिलकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।   शास्त्रों में वर्णित है, "यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।" यानी भगवान शिव सर्वव्यापी हैं, लेकिन बैद्यनाथ धाम में उनकी उपस्थिति सबसे अधिक प्रभावी मानी जाती है। यही कारण है कि जो भक्त यहां आकर सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं, उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं।  
अगर आप महाशिवरात्रि पर एक ऐसी जगह जाना चाहते हैं, जहां शिव और शक्ति का अद्भुत संगम हो, जहां हर कोना शिवमय हो, जहां हर श्रद्धालु बाबा की भक्ति में डूबा हुआ हो, तो बाबा बैद्यनाथ धाम से बेहतर कोई स्थान नहीं। यहां की अनूठी परंपराएं, शिव बारात की भव्यता, भक्तों का उमड़ा हुआ सैलाब, और भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा इसे अद्वितीय बनाती है।  

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