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ऐसी मूर्ति जो दिन में तीन बार बदलती है रूप! जानें उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षक मां धारी देवी का रहस्य

उत्तराखंड की वादियों में छिपा है एक ऐसा मंदिर जहां दिन में तीन बार माता की मूर्ति रूप बदलती है! यहां मौजूद मां को पूरे उत्तराखंड की रक्षक माना जाता है. स्थानीय पुजारी के अनुसार यहां मौजूद माता की मूर्ति द्वापर युग से स्थापित है. आइए विस्तार से जानते हैं मां धारी देवी के बारे में…

26 Sep, 2025
( Updated: 26 Sep, 2025
11:34 AM )
ऐसी मूर्ति जो दिन में तीन बार बदलती है रूप! जानें उत्तराखंड के चारों धामों की रक्षक मां धारी देवी का रहस्य
Twitter/@Aryavrta

भारत एक ऐसा देश है जहां कदम-कदम पर ऐसे कई सारे मंदिर हैं जो बेहद ही रहस्यमयी और अलौकिक हैं. यहां ऐसे अद्भुत मंदिरों की कोई कमी नहीं. ऐसी ही उत्तराखंड की सुंदर वादियों में बसा है एक चमत्कारी मंदिर जहां मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार रूप बदलती है. सुबह एक कन्या की तरह, दोपहर में औरत की तरह और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है. भक्तों के लिए यह नजारा अद्भुत होता है. लेकिन ऐसे में यह सवाल उठता है कि यह मंदिर उत्तराखंड में कहां स्थित है? मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है? और उत्तराखंड के चारों धामों से मंदिर का कनेक्शन क्या है? आइए जानते हैं…

उत्तराखंड के श्रीनगर से लगभग 14 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर मां धारी देवी के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर उत्तराखंड की सुरक्षा के लिए बेहद ही खास है क्योंकि मान्यता है कि मां धारी देवी यहां के चारों धामों की रक्षा करती हैं. अगर मां नाराज हुईं तो मां के गुस्से का कहर झेलना पड़ सकता है. जैसे 2013 में झेलना पड़ा था.

उत्तराखंड को झेलना पड़ा था मां धारी देवी का गुस्सा!
दरअसल 2013 में मां धारी देवी की मूर्ति को अलकनंदा जलविद्युत बांध बनाने के लिए मूल स्थान से हटाकर दूसरी जगह पर रख दिया गया था. स्थानीय लोगों ने इस निर्णय को विनाशकारी बताया था. जिसके कुछ समय बाद उत्तराखंड में इतनी भीषण बाढ़ आई कि हजारों लोग मारे गए. लोगों का मानना था कि यह बाढ़ मां धारी देवी की मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटाने पर आई थी. इसलिए फिर से यहां मंदिर का निर्माण करवाया गया.

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मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार मां धारी देवी का मंदिर भीषण बाढ़ की वजह से बह गया था. मंदिर के अंदर स्थित मूर्ति भी बह गई थी. जिसके बाद मां की यह प्रतिमा एक चट्टान से जाकर टकराकर रुक गई और उस प्रतिमा से एक ईश्वरीय आवाज निकली. जिसके बाद धारों गांव के लोगों ने इस मूर्ति को यहीं स्थापित करने का फैसला लिया और एक मंदिर का निर्माण करवाया. जो पूरे उत्तराखंड वासियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है.

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