Advertisement

Vande Mantram At 150: वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रीय गीत, जन-गण मन से कैसे है अलग?

राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे हो गए हैं, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित ये गीत भारत माता की आराधना का प्रतीक है.स्वतंत्रता संग्राम मे इसने लाखों युवाओं को प्रेरित किया और आजादी के बाद लोकतंत्र को मज़बूत किया.

सात नवंबर को राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे हो गए हैं, ये गीत ना सिर्फ एक काव्य रचना है, बल्कि ये स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा थी. बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित ये गीत भारत माता की आराधना का प्रतीक है, जो ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ राष्ट्रवाद की ज्वाला बन गई. फिर ये गीत समय बढ़ने के साथ राष्ट्रीय गीत बन गया. 

वंदे मातरम की रचना का बीज कब बोया गया

ये साफ़ एक साधारण कविता  से शुरु होकर स्वाधीन भारत के संविधान तक पहुंचता है, वंदे मातरम की रचना का बीज 1870 के दशक में बोया गया था. ब्रिटिश इंडिया में डिप्टी मजिस्ट्रेट रहे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों से आहत थे. सात नवंबर 1875 में उन्होंने इसे पहली बार अपनी बंगाली पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित किया था. लेकिन पूर्ण रूप से इस गीत को 1882 में उनके उपन्यास आनंदमय में स्थान दिया गया. 

इसे गॉड सेव द क्वीन का विकल्प बनाने के लिए रचा 

इस उपन्यास की कहानी 18वीं शताब्दी के संन्यासी विद्रोह पर आधारित है, जहां वंदे मातरम एक संन्यासी भवनानंद द्वारा गाया जाता है. गीत के पहले दो छंद संस्कृत में है, जो भारत को दुर्गा के रूप में चित्रित करते हैं. इसमें सपनों की मातृभूमि करोड़ों लोगों की आवाजों से गूंजती है. बाकी छंद बंगाली में हैं, जो मां भारती की स्तुति करते हैं. बंकिम ने इसे गॉड सेव द क्वीन का विकल्प बनाने के लिए रचा, जो ब्रिटिश शासन का राजकीय गान था. 

सबसे पहले वंदे मातरम का सार्वजनिक गायन कहां हुआ था?

सबसे पहले वंदे मातरम का सार्वजनिक गायन 1896 में हुआ था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे बंगाली शैली में संगीतबद्ध कर गाया. ये अधिवेशन कांग्रेस का 12वां सत्र था, जहां राष्ट्रवाद की लहर तेज थी. टैगोर ने इसे लयबद्ध बनाया, जिससे ये केवल कविता न रहकर एक शाक्तिशाली गान बन गई. इससे पहले 1882 में उपन्यास प्रकाशन पर कुछ अंश गाए गए थे. लेकिन राजनीतिक मंच पर पहली बार 1896 में ही ये गूंजा. 

लाहौर से कोलकाता तक वंदे मातरम का जयघोष गूंजा

साल 1886 के कोलकाता अधिवेशन में कवि हेमचंद्र बनर्जी ने इसके कुछ अंश गाए थे. लेकिन पूर्ण गायन 1896 का मानक माना जाता है, इस गायन ने कांग्रेस अधिवेशनों की परंपरा शुरु की. हर सत्र वंदे मातरम से आरंभ  होता. 1905 में बंगाल विभाजन के ख़िलाफ़ स्वेदशी आंदोलन में इसे हथियार बना दिया. रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे राष्ट्रवादी नारे में बदल दिया, सड़कों पर, जुलूसों में, लाहौर से कोलकाता तक वंदे मातरम का जयघोष गूंजा. अरविंद घोष जैसे क्रांतिकारियों ने इसे स्वतंत्रता का मंत्र कहा, बिटिश ने इसे प्रतिबंधित करने की कोशिश की, लेकिन 1911 में बंगाल विभाजन रद्द कराने में इस गान की भूमिका रही. 

वंदे मातरम कैसे बना राष्ट्रीय गीत

1906-1911 तक पूर्ण गीत गाया जाता था, लेकिन मुस्लिम लीग के विरोध के कारण बाद में पहले दो छंद ही अपनाए गए. गांधी जी ने भी इसे अपनाया, हालांकि वे इसके धार्मिक रंग से सावधान थे. 1937 में कांग्रेस ने इसे अपना गान धोषित किया. आजादी के बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया. राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की अगुवाई में ये फैसला हुआ. जन गण मन राष्ट्रीय गान बना, लेकिन वंदे मातरम ने मातृभूमि की भावना को जीवंत रखा. 

2003 में इसे एशिया का सर्वश्रेष्ठ गीत चुना

साल 2003 में बीबीसी ने इसे एशिया का सर्वश्रेष्ठ गीत चुना, आज भी ये 52 सेकंड में गाया जाता है, जो देशभक्ति जगाता है. वंदे मातरम का सफ़र बताता है कि एक गीत कैसे आंदोलन बन जाता है.

1875 की स्याही से निकला ये शब्द आज भी भारत की एकता का प्रतीक है. स्वतंत्रता संग्राम मे इसने लाखों युवाओं को प्रेरित किया और आजादी के बाद लोकतंत्र को मज़बूत किया. 

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement

LIVE